23 अक्तूबर 2012

४. आ गई प्रिय फिर दीवाली

आ गई प्रिय, फिर दिवाली,
पर्व पावन है।
एक दीपक तुम जलाओ,
इक जलाऊं मैं।

घोर तम की यामिनी,
दुल्हन बनी इतरा रही।
अवनि से अंबर तलक,
ज्योतिर्मयी मन भा रही।
रोशनी की रीत यह,
युग युग से चलती आ रही,
दीप में प्रिय, घृत भरो,
बाती सजाऊँ मैं।

सज रही आँगन रंगोली,
द्वार लड़ियाँ हार हैं।
नवल वस्त्रों में सभी,
छोटे बड़े तैयार हैं।
सगुन की इस रात में,
हर साज की मनुहार है,
प्रिय, सुरों में साथ दो,
शुभ गीत गाऊँ मैं।

शोर से गुंजित दिशाएँ।
पटाखों का दौर है,
जोश जन जन मन पे छाया,
पर्व यह पुरजोर है।
हर बुराई पर विजय का,
जश्न चारों ओर है,
फुलझड़ी तुम थाम लो,
प्रिय, लौ दिखाऊँ मैं।

थाल हैं पकवान के,
पूजा की शुभ थाली सजी।
कमल पर आसीन है,
कर दीप धारी लक्ष्मी।
आ गई मंगल घड़ी,
करबद्ध हैं परिजन सभी,
प्रिय, करो तुम आरती,
माँ को मनाऊँ मैं।

-कल्पना रामानी

15 टिप्‍पणियां:

  1. घोर तम की यामिनी,
    दुल्हन बनी इतरा रही ।
    अवनि सेँ अम्बर तलक,
    ज्योतिर्मयी मन भा रही ।
    रोशनी की रीत यह,
    युग युग से चलती आ रही ।
    दीप मेँ प्रिय, घृत भरो,
    बाती सजाऊँ मैँ ।

    पर्व की रीत का बहुत ही सुन्दर प्रवाह प्रस्तुत करता नवगीत ।
    कल्पना जी को बधाई ।

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  2. बहुत मनभावन गीत लिखा है कल्पना दी! दिवाली की शुभकामनाएँ !

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  3. अनिल वर्मा, लखनऊ.24 अक्तूबर 2012 को 8:23 pm बजे

    बहुत ही मोहक नवगीत. दीपावली साकार करती रचना के लिये हार्दिक बधाई कल्पना जी.

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  4. घोर तम की यामिनी,
    दुल्हन बनी इतरा रही।
    अवनि से अंबर तलक,
    ज्योतिर्मयी मन भा रही।

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  5. हर बुराई पर विजय का,
    जश्न चारों ओर है,
    फुलझड़ी तुम थाम लो,
    प्रिय, लौ दिखाऊँ मैं।
    बहुत सुन्दर गीत .......अपने प्रिय के साथ मिल कर दीपावली सचमुच विभोर कर गयी ...बधाई कल्पना जी

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  6. एक दीपक तुम जलाओ
    इक जलाऊं मैं

    बहुत सुन्दर कल्पना जी। बधाई

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  7. एक दीपक तुम जलाओ
    एक जलाऊँ मैं ...
    फुलझड़ी तुम थाम लो
    प्रिय, लौ दिखाऊँ मैं !

    उत्सवी उजालियों में प्रेमरश्मियों की यह घुली-मिली झिलमिल, बहुत सुखकर, बहुत सुन्दर !

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  8. कृष्ण नन्दन मौर्य25 अक्तूबर 2012 को 6:19 pm बजे

    सज रही आँगन रंगोली,
    द्वार लड़ियाँ हार हैं।
    नवल वस्त्रों में सभी,
    छोटे बड़े तैयार हैं।
    सगुन की इस रात में,
    हर साज की मनुहार है,
    प्रिय, सुरों में साथ दो,
    शुभ गीत गाऊँ मैं।

    वाह क्या बात है.

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  9. इस सुंदर गीत के लिए कल्पना जी को बहुत बहुत बधाई

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  10. बड़ी दी कल्पना रमानी जी .. !
    गीत के साथ लय शब्द एवं भाव के साथ समस्त दीपोत्सव पर्व को एक नवीन आयाम देने की कला आपसे सीखने हेतु विनत हूं ..
    आशीष दीजिये .. !

    अप्रतिम .. मनमोहक गीत

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  11. आ गई मंगल घड़ी,
    करबद्ध हैं परिजन सभी,
    प्रिय, करो तुम आरती,
    माँ को मनाऊँ मैं।
    ...वाह क्या बात है ....बहुत ही सुन्दर भाव कल्पनाजी

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  12. हार्दिक बधाई , दीवाली शुभकामनाएं .

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  13. वह वाह वाह कल्पना जी ...दीपावली पर इतना सुंदर इतना पावन इतना मनभावन गीत मैंने आज तक नहीं पढ़ा ...!!
    उत्सव की गरिमा और साथ ही साथ प्रेम की महिमा बखानता यह गीत दिल को लुभा गया बिलकुल |
    जितना पावन यह पर्व है उतना ही पावन है आपका यह गीत और इसके कल्पित पात्रों का प्रेम ..सादर बधाई स्वीकार करें ..!!
    दीप में प्रिय, घृत भरो,
    बाती सजाऊँ मैं। .... ऐसा दीप हर एक के जीवन में जले ...

    प्रिय, सुरों में साथ दो,
    शुभ गीत गाऊँ मैं। ...ऐसे मधुर गीत हर एक के जीवन की झंकार बने ....

    फुलझड़ी तुम थाम लो,
    प्रिय, लौ दिखाऊँ मैं। ...प्रेम की ऐसी फुलझड़ी हर कोई छुडा पाए ....

    प्रिय, करो तुम आरती,
    माँ को मनाऊँ मैं।...ऐसी रूहानी आरती से हर कोई माँ को रिझाये ....
    पुनः एक बार कोटि कोटि बधाई व दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं !!!

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  14. -कल्पना रामानी जी आपको हार्दिक बधाई इस उत्तम प्रस्तुति के लिए।

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